(1) अविगत-गति कछु
कहत ना आवे |
जो गूंगे
मीठे फल कौ
रस, अंतर्गत ही
भावे |
परम स्वाद
सबही सुनिरंतर, अमित
तोष उपजावे |
मन-बानी
कौ अगम अगोचर,
सो जाने जो
पावे |
रूप-रेख
गुन-जात जुगति-बिनु, निरालंब कित
धावे |
सब विधि
अगम विचारहि ताते,
सुर सगुन पद
गावे ||
शब्दार्थ:-
अविगत= अज्ञात ईश्वर, गति=
दशा, अंतरगत= हृदय
में, अमित= अत्याधिक,
तोष= संतोष, उपजावे=
पैदा करता है,
अगोचर= अदृश्य,जुगति= मुक्त,
निरालंब= बिना आसरा
के,धावे= दौड़े,
अगम= पहुंच के
बहार,सगुन= सगुण
भक्ति
संदर्भ:- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी
पाठ्यपुस्तक मैं भक्ति
धारा पाठ के
अंतर्गत विनय के
पद नामक शीर्षक
से ली
गई है | इसके
रचयिता महाकवि सूरदास जी
हैं |
प्रसंग:- इस पंक्तियों
में सूरदास जी
ने सगुण साकार
ब्रह्मा की लीला
का वर्णन किया
है |
व्याख्या:-
सूरदास जी कहते
हैं कि, निर्गुण
निराकार ब्रह्मा की लीला
कुछ कहते नहीं
बनती है, अर्थात
निर्गुण ब्रह्मा का वर्णन
किया नहीं जा
सकता जिस प्रकार
गूंगा व्यक्ति मीठा
फल खाता है
और उसके रस
के आनंद का
अंदर ही अंदर
अनुभव करता है|
वहा आनंद उसे
अत्यधिक संतोष प्रदान करता
है लेकिन उसका
शब्दों में वर्णन
नहीं कर सकता
उसी प्रकार निर्गुण
ब्रह्मा मन और
वाणी से परे
है| उसे तो
जानकर ही प्राप्त
किया जा सकता
है| उस निर्गुण
ब्रह्मा की ना
कोई रूपरेखा होती
है और ना
कोई आकृति ना
उसमें कोई गुण
होता है और
ना उसे प्राप्त
करने का कोई
उपाय है| ऐसी
दशा में परमात्मा
को प्राप्त करने
हेतु मन को
तो कोई ना
कोई आधार चाहिए
ही, तभी वह
उसको पाने के
लिए प्रयास कर
सकता है| सूरदास
जी कहते हैं
कि मैंने यह
बात भली-भांति
जान ली है की निर्गुण
ब्रह्मा हमारी पहुंच से
बहुत दूर है|
इसी कारण मैंने
सगुण लीला के
पदों का गान
किया है |
विशेष:-
(1) इस पंक्ति में निर्गुण
ब्रह्मा को कठिन
और सगुण ब्रह्मा
को सुगम माना
है |
(2) संपूर्ण पद में
अनुप्रास अलंकार का प्रयोग
हुआ है|
(3) पद मै
शांत रस है|
(2) मो सम
कौन कुटिल खल
कामी |
तुम सौ
कहां छिपी करुनामय,
सबके अंतरजामी |
जो तन
दियो ताहि बिसरायो,
ऐसी नौन-हरामी
|
भरि-भरि
द्रोह विषै कौ
धावत, जैसे सूकर
ग्रामी |
सुनि सत्संग
होत जिय आलस,
विषयिनि संग विसरामी
|
श्री हरि-चरण छोडि
विमुखनि की, निसि-दिन करत
गुलामी |
पापी परम,
अधम अपराधी, सब
पतितनि मैं नामी
|
सूरदास प्रभु अधम-उधारन, सुनिय श्रीपति
स्वामी ||
शब्दार्थ:-
सम= समान कुटिल खल कामी=
टेढ़ा, दुष्ट, विषय भोग
में डूबा हुआ
अंतरजामी= ह्रदय की बात
जानने वाला ताहि= उसी को बिसरायो=
भूल गया
नौन-हरामी= नमक हराम विषै
कौ धावत= विषय
वासनाओं की ओर
दौड़ता हुआ
सूकर ग्रामी= गांव का
सूअर अधम-उधारन= नीच व्यक्तियों
का उद्धार करने
वाले
संदर्भ:-प्रस्तुत पंक्तियां हमारी
पाठ्यपुस्तक मैं भक्ति
धारा पाठ के
अंतर्गत विनय के
पद नामक शीर्षक
से ली गई
है| इसके रचयिता
महाकवि सूरदास जी हैं
|
प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियों में
सूरदास जी अपने
को महा पापी
कहकर भगवान से
अपने को उद्धार
करने की प्रार्थना
कर रहे हैं
|
व्याख्या:-
सूरदास जी कहते
हैं कि हे
भगवान मेरे समान
कोई भी कुटिल,
खल और कामी
ही नहीं है
अर्थात में सबसे
बड़ा पापी हूं
हे भगवान! आप
करुणामय है तथा
सबके हृदय की
बात जानते हैं,
आप मेरे पापो को भली-भांति जानते हैं
|
आपने मुझको यह
शरीर दिया और
मैं कामवासनाओ में
इतना अंधा हो
गया कि बार-बार उन्हीं
की और दौड़ता
रहता हूं |गांव
के सूअर की
भांति मैं पेट
भरते ही विषय
भोग की ओर
दौड़ता हूं सत्संग
की बातों में
मेरा मन नहीं
लगता विषय वासना
में लिप्त लोगों
के साथ मुझे
सुख का अनुभव
होता है |
मैं भगवान के चरणों
को छोड़कर रात
दिन दुष्ट लोगों
की गुलामी करता
रहता हूं मैं
महान पापी हूं
तथा अधम अपराधी
हूं हे करुणामय
भगवान श्री कृष्ण!
आप तो अधम
अर्थात पतित लोगों
का उद्धार करने
वाले हैं, अतः
हे श्रीपत स्वामी
भगवान! मेरी पुकार
को सुन लीजिए
और मुझ दुष्ट
का उद्धार कर
दीजिए |
विशेष:-
(1) भाषा में सरलता
एवं लयात्मकता है|
(2) उपमा एवं
अनुप्रास अलंकार की छटा
है|
(3) नॉन-हरामी,
गुलामी आदि उर्दू
फारसी शब्दों का
प्रयोग किया है|
अगर आपको इस पद का वीडियो देखना है, तो इस लिंक पर क्लिक करें...https://www.youtube.com/watch?v=Or_FAl4Jv3s&t=35s
https://www.youtube.com/watch?v=ln4_c5rtkbY
अगर आपको इस पद का वीडियो देखना है, तो इस लिंक पर क्लिक करें...https://www.youtube.com/watch?v=Or_FAl4Jv3s&t=35s
https://www.youtube.com/watch?v=ln4_c5rtkbY
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें