सन्दर्भ : प्रस्तुत कुण्डली कविवर गिरिधर द्वारा रचित ‘गिरिधर की कुण्डलियाँ’ से ली गई है।
प्रसंग : इस छन्द में कवि कहता है कि मनुष्य को बिना सोचे-समझे कोई काम नहीं करना चाहिए।
व्याख्या : गिरिधर कवि जी कहते हैं कि बिना सोच और – विचार के जो कोई भी व्यक्ति काम करता है, वह बाद में पछताता है। ऐसा करने से एक तो उसका काम बिगड़ जाता है, दूसरे संसार में उसकी हँसी होती है अर्थात् सब लोग उसका मजाक उड़ाते हैं। संसार में हँसी होने के साथ ही साथ उसके स्वयं के मन में शान्ति नहीं रहती है, वह परेशान हो जाता है। खाना-पीना, सम्मान, राग-रंग आदि कोई भी बात उसे अच्छी नहीं लगती है।
गिरिधर कवि जी कहते हैं कि इससे उत्पन्न दुःख टालने पर भी टलता नहीं है अर्थात् भगाने पर भी भागता नहीं है और सदा ही यह बात मन में खटकती रहती है कि बिना सोच-विचार के करने से मुझे यह मुसीबत झेलनी पड़ रही है।
विशेष :
1. ‘टरत न टारे’ मुहावरे का सुन्दर प्रयोग।
2. अवधी-भाषा।
3. कुण्डलियाँ-छन्द।
सन्दर्भ : प्रस्तुत कुण्डली कविवर गिरिधर द्वारा रचित ‘गिरिधर की कुण्डलियाँ’ से ली गई है।
प्रसंग : कवि कहता है कि संसार में गुणों का ही महत्त्व है; बिना गुण के कोई किसी को नहीं पूछता है।
व्याख्या : कविवर गिरिधर कहते हैं कि इस संसार में गुणों के ग्राहक तो हजारों लोग हैं, लेकिन बिना गुणों के किसी भी व्यक्ति को कोई नहीं चाहता है। उदाहरण देकर कवि समझाता है कि कौआ और कोयल दोनों का रंग एक जैसा होता है पर दोनों की वोशी में जमीन-आसमान का अन्तर होता है। जब संसारी लोग इन दोनों की वाणी को सुनते हैं तो कोयल की वाणी सबको प्रिय लगती है और कौए की नहीं। इस कारण कोयल को सब प्यार करते हैं और कौओं से परहेज करते हैं।
गिरिधर कवि जी कहते हैं कि हे मनुष्यो! कान लगाकर सुन लो इस संसार में बिना गुणों के कोई किसी को पूछता तक नहीं है। इस संसार में गुणों के ग्राहक तो हजारों होते हैं, निर्गुण का ग्राहक कोई नहीं।
विशेष :
1. कवि ने मनुष्यों को गुणों को ग्रहण करने का सन्देश दिया है।
2. भाषा-अवधी।
3. छन्द-कुण्डलियाँ।
सन्दर्भ : प्रस्तुत कुण्डली कविवर गिरिधर द्वारा रचित ‘गिरिधर की कुण्डलियाँ’ से ली गई है।
प्रसंग : इसमें कवि ने व्यावहारिक जीवन की यह बात बताई है कि बुद्धिमान व्यक्ति वही होता है जो बीती हुई बात को भुलाकर आगे के लिए सचेत रहता है।
व्याख्या : गिरिधर कवि जी कहते हैं हे मनुष्यो! जो बात घटित हो चुकी है उसके बारे में व्यर्थ में सोच-विचार कर समय को बर्बाद मत करो। तुम आगे होनी वाली बातों या घटनाओं की चिन्ता करो जो कुछ भी तुमसे सहज, सरल रूप में बन जाये उसी में अपना मन लगाओ। ऐसा करने पर कोई भी दुष्ट व्यक्ति तुम्हारी बातों की हँसी नहीं उड़ाएगा और न ही तुम्हारे मन में कोई खोट रहेगा।
गिरिधर कवि जी कहते हैं कि हे मनुष्यो! तुम अपने मन में यह विश्वास रखो कि आने वाली बातों या घटनाओं में तुम पूरी सावधानी बरतो और जो हो गई, सो हो गई।
विशेष :
1. कवि ने व्यावहारिक जीवन की बात बताई है।
2. अवधी भाषा का प्रयोग।
3. कुण्डलियाँ-छन्द।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. गिरिधर के अनुसार हमें क्या भूल जाना चाहिए?
उत्तर: गिरिधर के अनुसार हमें बीती हुई बातों को भूल जाना चाहिए।
प्रश्न 2. कोयल को उसके किस गुण के कारण पसन्द किया जाता है?
उत्तर: कोयल को उसकी मीठी वाणी के गुण के कारण पसन्द किया जाता है।
प्रश्न 3.गिरिधर द्वारा प्रयुक्त छन्द का नाम लिखिए।
उत्तर: गिरिधर द्वारा प्रयुक्त छन्द का नाम ‘कुण्डलियाँ’ है।
प्रश्न 4.व्यक्ति सम्मान योग्य कब बन जाता है?
उत्तर: व्यक्ति जब परोपकार की भावना से कार्य करता है तो वह सम्मान के योग्य बन जाता है।
प्रश्न 5. भारतेन्दु के अनुसार भारत की दुर्दशा का प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर: भारतेन्दु के अनुसार भारत की दुर्दशा का प्रमुख कारण आपस में बैर और फूट की भावना का होना है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.कवि गिरिधर के अनुसार मन की बात को कब तक प्रकट नहीं करना चाहिए?
उत्तर:कवि गिरिधर के अनुसार मन की बात को तब तक प्रकट नहीं करना चाहिए जब तक कि किसी कार्य में सफलता न मिल जाए।
प्रश्न 2. धन-दौलत का अभिमान क्यों नहीं करना चाहिए?
उत्तर: धन-दौलत का अभिमान इसलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि यह धन-दौलत सदा एक के साथ नहीं रहती है, अपितु यह चंचल एवं स्थान बदलने वाली है।
प्रश्न 3. कवि ने गुणवान के महत्व को किस प्रकार रेखांकित किया है?
उत्तर: कवि ने गुणवान के महत्त्व को इस प्रकार रेखांकित किया है कि गणी व्यक्ति के चाहने वाले हजारों व्यक्ति मिल जाते हैं पर निर्गुण का साथ तो घरवाले भी नहीं दे पाते। कोई काम या व्यापार चल नहीं सकता है। इनको चलाने के लिए उनमें डूबना पड़ता है।
प्रश्न 5. सम्माननीय होने के लिए किन गुणों का होना आवश्यक है?
उत्तर: सम्माननीय होने के लिए व्यक्ति को परोपकारी होना चाहिए; कोरे पद से काम नहीं चलता है।
प्रश्न 6. ‘उठहु छोड़ि विसराम’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: ‘उठहु छोड़ि विसराम’ का आशय यह कि तुम विश्राम त्यागकर उस निर्गुण निराकर ईश्वर को पूरी तरह अपना लो।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. बिना विचारे काम करने में क्या हानि होती है? समझाइए।
उत्तर: जो व्यक्ति बिना विचारे अपना कोई काम करता है, तो उस काम में उसे सफलता नहीं मिलती है। इससे जहाँ उसका काम बिगड़ जाता है वहीं संसार में उसकी हँसी भी उड़ती है।
प्रश्न 2. कौआ और कोयल के उदाहरण से कवि जो सन्देश देना चाहता है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: कौआ और कोयल के उदाहरण द्वारा कवि यह सन्देश देना चाहता है कि संसार में व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसके रूप-रंग से नहीं अपितु गुणों से होती है।
प्रश्न 3. पाठ में संकलित भाषा सम्बन्धी दोहों के माध्यम से भारतेन्दु जी क्या सन्देश देना चाहते हैं?
उत्तर: पाठ में संकलित भाषा सम्बन्धी दोहों के माध्यम से भारतेन्दु जी यह सन्देश देना चाहते हैं कि किसी भी देश की उन्नति उसकी मातृ भाषा के विकास द्वारा ही सम्भव है।
प्रश्न 4. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की काव्य प्रतिभा पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर: भारतेन्दु हरिश्चन्द्र बहु आयामी रचनाकार हैं। उन्होंने नाटक, काव्य, निबन्ध आदि सभी विधाओं पर लेखनी चलाई है। वे समाजोन्मुखी चिन्तक कवि हैं, इसलिए उनकी कविताओं में नीति कथन सर्वत्र मिलते हैं। आपने परोपकार एवं एकता को विशेष महत्त्व प्रदान किया है।
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