(1) कवहूं ससि मांगत आरि करै कवहूं प्रतिबिंब निहारि डरै।
कवहूं कर ताल बजाइ कै नाचत मातु सबै मन मोद भरै।।
कवहूं रिसिआई कहै हठिकै पुनि लेत सोई जेहि लागि अरै।
अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी मन-मंदिर में बिहारै।।
शब्दार्थ:-आरि= ज़िद करना, निहारि= देखकर, मोद= आनंद, रिसिआई= खिसिया कर, लागि अरै=
किसी बात की जिद पर अड़ जाना
संदर्भ:- प्रस्तुत पंक्ति गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित कविताबलि से ली गई है।
प्रसंग:- इस पंक्ति में एक सखी दूसरी सखी से बालक राम की सुंदर बाल-क्रियाओं का वर्णन करती हुई कह रही है।
व्याख्या:- हे सखी! बालकराम कभी चंद्रमा को मांगते हुए उसे लेने की हठ करते हैं और कभी धरती पर पढ़ते अपने ही प्रतिबिंब को देखकर डरने लगते हैं। कभी ताली बजा-बजाकर नाचते हैं। तीनों माताएं उनकी इन बाल-क्रियाओं को देख देखकर मन ही मन आनंद से भर उठती हैं। कभी राम गुस्सा होकर हठ कर के कोई चीज मांग बैठते हैं। और फिर उस वस्तु के लिए हठ पकड़ जाते हैं, उसे लेकर ही मानते हैं।
तुलसीदास जी कहते हैं कि राजा दशरथ के यह चारों बालक तुलसी के मनरूपी मंदिर में सदैव बिहार करते रहे।
विशेष:- (1) इस पद में कवि ने राम की बाल चेष्टाओ को बड़े ही स्वभाविक रूप से वर्णित किया है। (2) अनुप्रास एवं रूपक अलंकार का प्रयोग किया है।
(3) वात्सल्य रस का वर्णन किया है।
(2) वर दंत की पंगति कुंदकली अधराधर पल्लव खोलन की।
चपला चमकै धन बीच जगैं छवि मोतिन माल अमोलन की ।
घुंगरारि लटै लटकै मुख ऊपर कुंडल लोल कपोल की।
नेवछावरि प्रान करै तुलसी बलि जाऊं लला इन बोलन की ।।
शब्दार्थ:- वर=श्रेष्ठ, पंगति=पंक्ति,
अधराधर=दोनों ओठ, पल्लव=पत्ते, चपला=बिजली, धन=बादल, लोल=सुंदर, कपोल=गालों
संदर्भ:- इस पंक्ति में एक सखी दूसरी सखी से बालक राम की सुंदर बाल-क्रियाओं का वर्णन करती हुई कह रही है।
प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्ति में बालक राम के दांतो और घुंघराले बालों के सौंदर्य का वर्णन किया गया है।
व्याख्या:- एक सखी दूसरी सखी से बालक राम के दांतों और घुंघराले बालों के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती है कि ए सखी! राम के सुंदर दांतो की पंक्तियां कुंद नामक श्वेत रंग के फूल की कलियों के समान सुंदर है। उनके दोनों ओठ ऐसे लगते हैं मानो लता के कोमल चिकने पत्ते हिल रहे हो। जब राम हंसते हैं तो उनकी दातों की पंक्तियां ऐसी चमक उठती हैं जैसे बादलों के बीच बिजली चमक रही हो। उन दांतो
की छवि अमूल्य मोतियों की माला के समान सुंदर लगती है। उनके मुख्य के ऊपर घुंघराली लट लटकती रहती है और उनके गालों पर चंचल कुंडल लहराते रहते हैं।
तुलसीदास जी कहते हैं कि राम के इस सौंदर्य पर वह अपने प्राण न्योछावर करते हैं और उनकी बातों पर बलिहारी जाते हैं तथा वे उनकी बलैया लेते हैं।
विशेष:- (1) प्रस्तुत पद में बाल स्वभाव की सुंदर चेष्टाओं का वर्णन किया है।
(2) अनुप्रास एवं उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
(3) वात्सल्य रस का वर्णन किया गया है।
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