कक्षा-10 पाठ-15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन क्षितिज भाग-2 - हिंदी गुरु

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शुक्रवार, 18 जून 2021

कक्षा-10 पाठ-15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन क्षितिज भाग-2

 


                                     पाठ-15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन 

 

प्रश्न 1.कुछ पुरातनपंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया?

उत्तर-  द्विवेदी जी ने पुरातन पंथियों को निम्नलिखित तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया है

 

1. भारत में वेद-मंत्रों की रचना में स्त्रियों का योगदान रहा है, जो उनके शिक्षित होने का प्रमाण है।

2. रुक्मिणी द्वारा श्रीकृष्ण को पत्र लिखने से यह सिद्ध होता है कि प्राचीन काल में भी स्त्रियों के पढ़ने-लिखने का चलन था।

3. प्राचीन युग में अनेक पदों की रचना भी स्त्री ने की है।

4. जो लोग यह कहते हैं कि पुराने ज़माने में स्त्रियाँ नहीं पढ़ती थीं। वे या तो इतिहास से अनभिज्ञ हैं या फिर समाज के लोगों को धोखा देते हैं।

5. अगर ऐसा था भी कि पुराने ज़माने की स्त्रियों की शिक्षा पर रोक थी तो उस नियम को हमें तोड़ देना चाहिए क्योंकि ये समाज की उन्नति में बाधक है।

 

प्रश्न 2.‘स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं-कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन विवेदी जी ने कैसे किया है, अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- दि्वेदीजी ने कुतर्कवादियों की स्त्री शिक्षा विरोधी दलीलों का विनम्रतापूर्वक खंडन किया है। वे कहते हैं यदि स्त्रियों के द्वारा किए गए अनर्थ उनकी शिक्षा के कारण हैं तो पुरुषों के द्वारा बम फेंकने, रिश्वत लेने, चोरी करने, डाके डालने, नरहत्या करने जैसे कार्य भी उनकी पढ़ाई के कुपरिणाम हैं। ऐसे में इस अपराध को ही समाप्त करने के लिए विश्वविद्यालय और पाठशालाएँ बंद करवा देना चाहिए। इसके अलावा दुष्यंत द्वारा शकुंतला से गंधर्व विवाह करने और बाद में शकुंतला को भूल जाने से शकुंतला के मन में कितनी पीड़ा उत्पन्न हुई होगी,यह तो शकुंतला ही जानती है।

 

प्रश्न 3.द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोधी कुतर्को का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है; जैसे-‘यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। वे पढ़तीं, वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं।आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।

उत्तर- स्त्री शिक्षा से सम्बन्धित कुछ व्यंग्य जो द्विवेदी जी द्वारा दिए गए हैं -

 

1.स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घूँट! ऐसी ही दलीलों और दृष्टांतो के आधार पर कुछ लोग स्त्रियों को अपढ़ रखकर भारतवर्ष का गौरव बढ़ाना चाहते हैं।

2.स्त्रियों का किया हुआ अनर्थ यदि पढ़ाने ही का परिणाम है तो पुरुषों का किया हुआ अनर्थ भी उनकी विद्या और शिक्षा का ही परिणाम समझना चाहिए।

3.अच्छा तो उत्तररामचरित में ऋषियों की वेदांतपत्नियाँ कौन-सी भाषा बोलती थीं? उनकी संस्कृत क्या कोई संस्कृत थी ?

4.जिन पंडितों ने गाथा शप्तसती, सेतुबंधु महाकाव्य और कुमारपाल चरित आदि ग्रंथ प्राकृत में बनाए हैं,वे अपढ़ और गॅवार थे, तो हिंदी के प्रसिद्ध अखबार से संपादक को भी अपढ़ और गॅवार कहा जा सकता है।

 

प्रश्न 4.पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है। पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- पुराने समय में स्त्रियों का प्राकृत बोलना उनके अपढ़ होने का सबूत नहीं है, क्योंकि उस समय प्राकृत प्रचलित और लोक व्यवहारिक भाषा थी। भवभूति और कालिदास के नाटक जिस समय लिखे गए उस समय शिक्षित समुदाय ही संस्कृत बोलता था, शेष लोग प्राकृत बोलते थे। शाक्य मुनि भगवान बुद्ध और उनके चेलों द्वारा प्राकृत में उपदेश देना,बौद्ध एवं जैन धर्म के हजारों ग्रंथ का प्राकृत में लिखा जाना इस बात का प्रमाण है कि प्राकृत उस समय की लोक प्रचलित भाषा थी,ऐसे में स्त्रियों द्वारा प्राकृत बोलना उनके अपढ़ होने का सबूत कैसे हो सकता है।

 

प्रश्न 5.परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हों-तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर- परम्पराएँ मानव-जीवन को सुन्दर सुखमय बनाने के लिए होती हैं। प्रकृति ने मानव को स्त्री और पुरूष दो वर्गों में विभाजित किया है।  सृष्टि में दोनों की समान भागीदारी है। प्रकृति की ओर से कोई भेदभाव नहीं किया गया है। स्त्री हर क्षेत्र में पुरूषों की बराबरी कर रही है। स्त्री-पुरूष परस्पर मिलकर परिवार और समाज को बेहतर बना सकते हैं। इस कारण दोनों का प्रत्येक क्षेत्र में समान योगदान होता है। जहाँ तक परम्परा प्रश्न है। अतः परम्परा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरूष की समानता को बढ़ाते हैं।

 

प्रश्न 6.तब की शिक्षा प्रणाली और अब की शिक्षा प्रणाली में क्या अंतर है? स्पष्ट करें।

उत्तर- पहले की शिक्षा प्रणाली और आज की शिक्षा प्रणाली में बहुत परिवर्तन आया है।

1.तब की शिक्षा प्रणाली में स्त्रियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था पहले शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यार्थियों को गुरुकुल में रहना ज़रूरी था। परन्तु आज शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यालय है।

2.पहले शिक्षा एक वर्ग तक सीमित थी। लेकिन आज किसी भी जाति के तथा वर्ग के लोग शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। आज की शिक्षा प्रणाली में स्त्री-पुरूषों की शिक्षा में अंतर नहीं किया जाता है।

3.पहले की शिक्षा में जहाँ जीवन-मूल्यों की शिक्षा पर बल दिया जाता था वहीँ आज व्यवसायिक तथा व्यावहारिक शिक्षा पर बल दिया जाता है। गुरु-परम्परा भी लगभग समाप्त सी हो चली है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 7.महावीरप्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे?

उत्तर- महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का निबंध स्त्री शिक्षा का विरोध करने वालों तथा कुतर्क प्रस्तुत करने वालों पर व्यंग्य तथा उनकी सोच में बदलाव लाने का प्रयास है। द्विवेदी जी ने देखा कि समाज में स्त्री की दीन-हीन दशा का कारण शिक्षा की कमी है। यह कमी समाज का तथाकथित सुधार करने का ठेका लेने वालों की देन है। ये तथाकथित समाज सुधारक तथा उच्च शिक्षित लोग स्त्रियों को पढ़ने से रोकने की कुचाल रचे बैठे थे और स्त्री-शिक्षा में अड़ेंगे लगाते थे। ऐसे लोगों के हर कुतर्क का जवाब देते हुए द्विवेदी जी ने पौराणिक और रामायण से जुड़े उदाहरण ही नहीं पेश किए वरन् स्त्रीशिक्षा की अनिवार्यता और आवश्यकता पर जोर दिया। इससे स्पष्ट होता है कि यह निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है।

 

प्रश्न 8.द्विवेदी जी की भाषा-शैली पर एक अनुच्छेद लिखिए।

उत्तर- द्विवेदी जी की गणना एक ओर जहाँ उच्चकोटि के निबंधकारों में की जाती है,वहीं उन्हें भाषा सुधारक भी माना जाता है। उन्होंने अपने अथक प्रयास से हिंदी को सुंदर रूप प्रदान किया है। मुहावरों के प्रयोग से भाषा सजीव हो उठी है। इन्होने अपने निबंध में संस्कृत निष्ठ तत्सम शब्दों, के साथ साथ देशज, तद्भव तथा उर्दू और अंग्रेजी शब्दों का भी प्रयोग किया है। उनकी व्यंग्यात्मक शैली इतनी प्रभावशाली है कि पाठकों के अंतर्मन को छू जाती है।

इन प्रश्न और उत्तर का वीडियो देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें...

https://youtu.be/B5URZHNeOdM

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