कक्षा 9 (पद) पाठ 4 (वृंद के दोहे) - हिंदी गुरु

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शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

कक्षा 9 (पद) पाठ 4 (वृंद के दोहे)


                      वृंद के दोहे

(1) अपनी पहुंच विचारि कै, करतब करिये दर दौर
    तेते पाव पसारिये, जेती लंबी सौर।।

संदर्भ:- प्रस्तुत पंक्ति 'वृंद के दोहे' शीर्षक से ली गई है इसके कवि वृंद है
प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने यह उपदेश दिया है कि हमें अपनी शक्ति के अनुसार ही कार्य करना चाहिए
व्याख्या:- कविवर वृंद कहते हैं कि हमें अपनी शक्ति और सामर्थ्य के हिसाब से ही कार्य को करना चाहिए कहावत है कि हमें सोते समय उतने ही पैर फैलाने चाहिए जितनी हमारी रजाई लंबी हो
विशेष:- हमें अपनी शक्ति और सामर्थ्य से अधिक कार्य करने पर निराशा मिलती है
मुहावरों का प्रयोग किया गया है
ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है
उपमा अलंकार है

(2) उत्तम विद्या लीजिये, जदपि नीच पै होय
    परयों अपावन ठौर मे, कंचन तजत कोये।।

संदर्भ:- प्रस्तुत पंक्ति 'वृंद के दोहे' शीर्षक से ली गई है इसके कवि वृंद है
प्रसंग:- कविवर कहते हैं कि उत्तम विद्या जहां से भी मिले उसे ग्रहण कर लेनी चाहिए
व्याख्या:- कविवर वृंद कहते हैं कि हमें अपने जीवन में सदैव उत्तम विद्या को ग्रहण करना चाहिए चाहे वह विद्या निम्न श्रेणी के व्यक्ति से ही क्यों ना लेनी पड़े जिस प्रकार गंदगी में पड़े हुए सोने को कोई भी व्यक्ति त्यागता नहीं है अर्थात उसे उठाकर अपने पास रख लेता है उसी तरह उत्तम विद्या चाहे किसी भी नीच व्यक्ति के पास क्यों ना हो, उसे ग्रहण कर लेना चाहिए
विशेष:- उत्तम विद्या को ग्रहण करने का उपदेश दिया है
मुहावरों का प्रयोग किया गया है
ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है

(3) करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान
    रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान।।

संदर्भ:- प्रस्तुत पंक्ति 'वृंद के दोहे' शीर्षक से ली गई है इसके कवि वृंद है
प्रसंग:- कवि ने जीवन में अभ्यास का महत्व बताया है
व्याख्या:- कविवर वृंद जी कहते हैं कि हमें जीवन में सदैव अभ्यास करते रहना चाहिए निरंतर अभ्यास करने से मूर्ख व्यक्ति भी चतुर हो जाता है कवि उदाहरण देते हुए कहते हैं कि कुए पर रखी सिला (बड़े पत्थर) पर भी जब लोग पानी खींचते हैं तो उस पत्थर पर रस्सी की बार-बार रगड़ से बड़े-बड़े गड्ढे बन जाते हैं कहने का भाव यह है कि जब पत्थर जैसा कठोर पदार्थ वे बार-बार के अभ्यास से अपना रूप बदल देता है तो चेतन व्यक्ति भी निरंतर के अभ्यास से अवश्य ही चतुर बन जाएगा
विशेष:- कवि ने मनुष्य को अभ्यास करने की सीख दी है
कहावतो का प्रयोग किया गया है
ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है

(4) अति परिचै ते होत है, अरुचि अनादर भाये
    मलियागिरी की भीलनी, चंदन देत जराये ।।

संदर्भ:- प्रस्तुत पंक्ति 'वृंद के दोहे' शीर्षक से ली गई है इसके कवि वृंद है
प्रसंग:- कवि कहते हैं कि अत्यधिक पर कैसे कभी-कभी मनुष्यों में एक दूसरे के प्रति अनादर का भाव पैदा हो जाता है
व्याख्या:- कविवर वृंद कहते हैं कि अत्यधिक परिचय से अरुचि और अनादर का भाव जाग जाता है जैसे कि मलयानचल मे रहने वाली भीलनी चंदन को साधारण लकड़ी के रूप में जला देती है
विशेष:- अत्यधिक परिचय से मनुष्य अनादर करने लगता है
      चंदन के पेड़ मलियाचल पर्वत पर भी उगते हैं
      अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया है
      ब्रज भाषा का प्रयोग किया है

(5) भले बुरे सब एक से, जौ लौ  बोलत नाहिं
    जान परतु है काक पिक, रितु बसंत के माहिं ।।

संदर्भ:- प्रस्तुत पंक्ति 'वृंद के दोहे' शीर्षक से ली गई है इसके कवि वृंद है
प्रसंग:- कवि कहते हैं कि रंग और रूप से किसी भी अच्छे और बुरे, विद्वान और मूर्ख की पहचान नहीं होती है
व्याख्या:- कविवर वृंद कहते हैं कि अच्छे और दुष्ट व्यक्तियों में कोई अंतर दिखाई नहीं देता है, जब तक की बे बोलते या व्यवहार नहीं करते हैं जैसे कौवा और कोयल का रूप रंग एक सा होता है, दोनों में कोई अंतर दिखाई नहीं देता है पर बसंत ऋतु के आते ही दोनों में अंतर स्पष्ट ज्ञात हो जाता है कहने का भाव यह है कि कौवा तो अपने कर्कश ध्वनि कांव-कांव निकालेगा और कोयल अपना मधुर गीत छेड़ेगी
विशेष:- व्यवहार और बातचीत से अच्छे, बुरे और मूर्ख विद्वान की पहचान होती है
      अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया है
      ब्रज भाषा का प्रयोग किया है

(6) सबै सहायक सबल के, कोउ निवल सहाय
    पवन जगावत आग कौ, दीपहिं देत बुझाय।।

संदर्भ:- प्रस्तुत पंक्ति 'वृंद के दोहे' शीर्षक से ली गई है इसके कवि वृंद है
प्रसंग:- कविवर कहते हैं कि इस संसार में सभी ताकतवर का साथ देते हैं निर्मल का कोई साथ नहीं देता है
व्याख्या:- कविवर वृंद कहते हैं कि संसार में सभी लोग ताकतवर के सहायक होते हैं और निर्मल का कोई भी सहायक नहीं होता है जैसे कि वायु आग को तो अपने बैग से और अधिक जगा देती है पर वही वायु दीपक को बुझा देती है क्योंकि दीपक की आग कमजोर है
विशेष:- ताकतवर के सभी साथी बन जाते हैं परंतु निर्बल का कोई नहीं होता
      उपमा एवं अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है
      ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है

आपको इन पदों का वीडियो देखना है तो इस लिंक पर क्लिक करें... 
https://youtu.be/ApBAudd4saE

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