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रस के अंग
रस की परिभाषा - किसी काव्य को पढ़ने, सुनने अथवा उसका अभिनय देखने में पाठक, श्रोता या दर्शक को जो आनंद मिलता है वहीं काव्य में रस कहलाता है।
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रस के अंग – स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव व संचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। रस के अंग चार प्रकार के होते हैं।
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1 स्थायी भाव
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2 विभाव
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3 अनुभाव
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4 संचारी भाव ( व्यभिचारी भाव)
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1 स्थायीभाव - मन के अंदर स्थाई रूप से रहने वाला भाव स्थायी भाव कहलाता है। प्रत्येक मनुष्य के मन में प्रेम, दुख, क्रोध आदि स्थायी भाव स्थायी रूप से विद्यमान रहते हैं। यह हमारे हृदय में छिपे रहते हैं, और अनुकूल वातावरण मिलने पर स्वयं ही जागृत हो जाते हैं।
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2 विभाव - जो कारण हृदय में स्थित स्थायी भाव को जागृत तथा उद्दीप्त करें, उन्हें विभाव कहा जाता है। यह दो प्रकार के होते हैं।
आलंबन विभाव - जिन व्यक्तियों या पात्रों के सहारे से स्थायी भाव उत्पन्न होते हैं, वे आलंबन विभाव कहलाते हैं। जैसे
- सर्कस में जोकर को देख कर हंसी आ गई इस हास्य नामक स्थायी भाव को जागृत करने वाला जोकर आलंबन कहलाता है।
आलंबन के भी दो प्रकार होते हैं। एक आश्रय विभाव दो विषय विभाव
उदाहरण - नायिका को देखकर नायक के मन में भाव उत्पन्न होते हैं, तो नायक आश्रय है, तथा नायिका विषय है।
उद्दीपन विभाव - स्थायी भावों को उद्दीप्त या तीव्र करने वाले कारण उद्दीपन विभाव कहलाते हैं।
जैसे - सीता को देखकर राम के ह्रदय में रति नामक स्थायी भाव तीव्र हो गया यहां सीता का सौंदर्य उद्दीप्त विभाव कहलायेगा।
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अनुभाव - जिन चेष्टाओ के द्वारा भावों का अनुभव होता है, उसे अनुभाव कहते हैं। अर्थात भावों का अनुभव कराने वाले अनुभाव कहलाते हैं।
जैसे- शेर को देखकर घिघ्घी बंध जाना भागने की कोशिश करने पर भी भाग ना पाना यह चार प्रकार के होते हैं।
4 संचारी भाव/ व्यभिचारी भाव - यह स्थाई भाव को पुष्ट करके नष्ट हो जाते हैं। यह पानी में उठने वाले बुलबुला की तरह होते हैं। जो उठते हैं, और लुप्त हो जाते हैं। संचारी भाव की संख्या 33 मानी गई है।
watch now on youtube - https://youtu.be/017a2CKznPs
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