कल्याण की राह
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.चलने के पूर्व बटोही को क्या करना चाहिए?
उत्तर: चलने के पूर्व बटोही को मार्ग की भली-भाँति पहचान कर लेनी चाहिए।
प्रश्न 2. कवि के अनुसार व्यक्ति को किस रास्ते पर चलना चाहिए?
उत्तर: कवि के अनुसार व्यक्ति को उसी रास्ते पर चलना चाहिए, जिसको उसने अच्छी तरह समझ और देख लिया हो।
प्रश्न 3. प्रत्येक सफल राहगीर क्या लेकर आगे बढ़ा है?
उत्तर: प्रत्येक सफल राहगीर एक निश्चित उद्देश्य तथा अपनी राह में आने वाले संकटों का सामना करने का विश्वास लेकर आगे बढ़ा है तभी उसे सफलता मिली है।
प्रश्न 4. नरेश मेहता अपनी कविता में किसके साथ चलने की बात कह रहे हैं?
उत्तर: नरेश मेहता अपनी कविता में संघर्ष करते हुए सूरज के संग-संग चलते रहने की बात कह रहे हैं।
प्रश्न 5. नदियाँ आगे चलकर किस रूप में परिवर्तित हो जाती हैं?
उत्तर: नदियाँ आगे चलकर समुद्र में परिवर्तित हो जाती हैं।
प्रश्न 6. कवि ने रुकने को किसका प्रतीक माना है?
उत्तर: कवि ने रुकने को मरण का प्रतीक माना है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. स्वप्न पर मुग्ध न होने की राय कवि क्यों देता है
उत्तर: स्वप्न पर मुग्ध न होने की राय कवि इसलिए देता है कि इससे मनुष्य सच्चाई से दूर हो जाता है और ये स्वप्न उसे कहीं का नहीं रहने देते। वह इन्हीं पर विचरण करता हुआ जग और जीवन से अलग-थलग हो जाता है।
प्रश्न 2. कवि ने जीवन पथ में क्या-क्या अनिश्चित माना है?
उत्तर: कवि ने जीवन पथ में निम्न बातों को अनिश्चित माना है-किस जगह पर हमें नदी, पर्वत और गुफाएँ मिलेंगी, किस जगह पर हमें बाग, जंगल मिलेंगे, किस जगह हमारी यात्रा खत्म हो जायेगी और कब हमें फूल मिलेंगे और कब काँटे।
प्रश्न 3. कवि के अनुसार जीवन पथ के यात्री को पथ की पहचान क्यों आवश्यक है?
उत्तर: कवि हरिवंशराय बच्चन मानते हैं कि मानव को जीवन का मार्ग सोच-विचार कर अपनाना चाहिए। जीवन में महान बनने का निश्चित लक्ष्य लेकर, उसी के अनुरूप जीवन पथ अपनाना आवश्यक है। जीवन पथ का चयन महापुरुषों की जीवनियों के आधार पर निश्चित किया जा सकता है। जीवन पथ निश्चित कर उसमें अच्छे-बुरे का द्वन्द्व नितान्त अनुचित है क्योंकि हर सफल पंथी दृढ़ विश्वास के सहारे ही मार्ग पर चलता जाता है। महान जीवन जीने का भाव आते ही तन-मन में उत्साह भर जाता है। उस समय सही जीवन पथ की पहचान न हुई तो असफलता हाथ लग सकती है। अतः जीवन पथ के यात्री को जीवन पथ की पहचान होना आवश्यक है।
प्रश्न 4. कवि के अनुसार क्षितिज के उस पार कौन बैठा है और क्यों?
उत्तर: कवि के अनुसार क्षितिज के उस पार श्रृंगार किये हुए लक्ष्मी बैठी हैं और वह इसलिए बैठी हैं कि कोई पुरुषार्थी आये और अपने परिश्रम से उन्हें प्राप्त कर ले।
प्रश्न 5. मानव जिस ओर गया, उधर क्या-क्या हुआ?
उत्तर: मानव जिस ओर गया, उधर नगर बस गये और तीर्थ बन गये।
प्रश्न 6. ‘चरैवेति’कविता में कविने लोगों को क्या-क्या सलाह दी है?
उत्तर: ‘चरैवेति’ कविता में कवि ने लोगों को सलाह दी है कि उन्हें जीवन में कहीं भी रुकना नहीं चाहिए। जिस प्रकार सूरज दिन-रात चलता रहता है, उसी तरह उनको भी दिन-रात चलते रहना चाहिए। मानव ने निरन्तर चलकर ही नगर एवं तीर्थों का निर्माण किया है। जहाँ चलना थम जाता है वहीं मृत्यु आ जाती है। अतः निरन्तर चलते रहो।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. चलने से पूर्व बटोही को कवि किन-किन बातों के लिए आगाह कर रहा है?
उत्तर: चलने से पूर्व बटोही को कवि आगाह कर रहा है कि हे बटोही! तू चलने से पूर्व अपने पथ की पहचान कर ले। बटोही के क्रियाकलापों और चेष्टाओं की कहानी किसी पुस्तक में छपी नहीं मिलती है। इस मार्ग पर अनगिनत राही चले, पर अधिकांश का कोई पता नहीं है पर हाँ कुछ अनौखे रास्तागीर हुए हैं जिन्होंने अपने पग चिन्हों को मार्ग पर छोड़ा है और हम लोग उन्हीं पर चल रहे हैं।
प्रश्न 2. स्वप्न और यथार्थ में सन्तुलन किस तरह आवश्यक है? स्पष्ट करें।
उत्तर: कवि कहता है कि हमेशा स्वप्न पर ही तुम मुग्ध मत हो जाओ; जीवन में जो सत्य है उसे भी जान लो। संसार के पथ में यदि स्वप्न दो की संख्या में हैं तो सत्य दो सौ की संख्या में हैं। अत: स्वप्न के साथ ही साथ सत्य को भी जान लो। स्वप्न देखना बुरा नहीं है, हर आदमी अपनी उमर एवं समय के अनुसार इन्हें देखता है लेकिन कोरे स्वप्न से जीवन में काम नहीं चलता है। हमें सत्य का भी सहारा लेना पड़ता।
प्रश्न 3. ‘चरैवेति जन गरबा’ कविता का मूल आशय क्या है?
उत्तर: ‘चरैवेति जन गरबा’ कविता का मूल आशय यह है कि हमें जीवन में कभी भी रुकना नहीं चाहिए। जिस प्रकार सूरज दिन-रात चलता रहता है, उसी प्रकार हमको भी दिन-रात काम में लगे रहना चाहिए। मानव ने निरन्तर चलकर ही संसार में नये और भव्य नगरों का निर्माण किया है, उसी ने नये-नये तीर्थों का निर्माण किया है। जहाँ चलना थम जाता है, वहीं मृत्यु आ जाती है। अतः निरन्तर चलते रहो।।
प्रश्न 4. युग के संग-संग चलने की सीख कवि क्यों दे रहा है?
उत्तर: युग के संग-संग चलने की सीख कवि इसलिए दे रहा है कि जो व्यक्ति परिवर्तित युग के साथ कदम-से-कदम मिलाकर नहीं चलेगा, वह संसार की इस दौड़ में पिछड़ जायेगा। नयी सभ्यता के सामने उसके पैर जम नहीं पायेंगे। अतः कवि युग के साथ-साथ चलने की सीख दे रहा है।
बहु-विकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. चलने से पूर्व बटोही को क्या करना चाहिए?
(क) नगर देखना (ख) गाँव निर्धारित करना
(ग) राहगीर को देखना (घ) मार्ग निर्धारित करना।
उत्तर: (घ) मार्ग निर्धारित करना।
प्रश्न 2. नदियाँ आगे चलकर किस रूप में परिवर्तित हो जाती हैं?
(क) बाँध (ख) सागर
(ग) बालू (घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर: (ख) सागर
प्रश्न 3. कवि ने रुकने को किसका प्रतीक माना है?
(क) गति का (ख) रुग्णावस्था का
(ग) जीवन का (घ) मृत्यु का।
उत्तर: (घ) मृत्यु का।
प्रश्न 4. ‘चरैवेति जनगरबा’ कविता में कवि ने लोगों को क्या-क्या सलाह दी है?
(क) सूरज की भाँति प्रकाशित हो (ख) नदी के प्रवाह की भाँति सतत् चलो
(ग) चन्द्रमा व तारे की भाँति गति करो (घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
रिक्त स्थानों की पूर्ति
1. ‘पथ की पहचान’ कविता के रचयिता ………… हैं।
2. जीवन में उचित लक्ष्य का निर्धारण कर …………… पर अग्रसर होने पर ही सफलता मिलती
3. पूर्व चलने के बटोही पथ की …………….. कर ले।
4. रास्ते का एक काँटा पाँव का …………….. चीर देता।
उत्तर: 1.श्री हरिवंशराय बच्चन 2.जीवन-पथ 3.पहचान 4.दिल।
सत्य/असत्य
1. ‘इसकी कहानी पुस्तकों में छापी गयी’, ऐसा ‘पथ की पहचान’ में है।
2. ‘खोल इसका अर्थ, पंथी पंथ का अनुमान कर ले’ पंक्ति श्री हरिवंशराय बच्चन की – कविता की है।3. कवि ने सपनों पर मुग्ध होने के लिए उत्साहित किया है।
4. ‘क्षितिज पर श्रृंगार किये लक्ष्मी बैठी’ पंक्ति ‘चरैवेति जन गरबा’ कविता की है।
5. नदियाँ आगे चलकर सागर में परिवर्तित हो जाती हैं।
उत्तर: 1.असत्य 2.सत्य
3.असत्य 4.सत्य 5.सत्य।
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
1. चलने से पूर्व बटोही को क्या करना चाहिए?
2. जीवन का कल्याणमय पथ किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है?
3. भारत छोड़ो आन्दोलन में कौन सक्रिय रहे?
4. धरती को प्रकाश और ऋतुओं को नया शृंगार कौन प्रदान करता है?
उत्तर: 1.पथ की पहचान
2.सतत् कर्म द्वारा 3.नरेश मेहता 4.सूरज।
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