मातृभूमि का मान (प्रश्न-उत्तर) कक्षा -10 अध्याय- 8 लेखक - हरिकृष्ण प्रेमी - हिंदी गुरु

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शनिवार, 12 सितंबर 2020

मातृभूमि का मान (प्रश्न-उत्तर) कक्षा -10 अध्याय- 8 लेखक - हरिकृष्ण प्रेमी

 



अति लघु उत्तरीय प्रश्न

 

प्रश्न 1.बूंदी के राव मेवाड़ के अधीन क्यों नहीं रहना चाहते?
उत्तर:बूंदी के राव मेवाड़ के अधीन नहीं रहना चाहते थे क्योंकि वे स्वतन्त्रता में विश्वास करते थे और किसी की भी गुलामी स्वीकार नहीं करते थे।

प्रश्न 2.मुट्ठी भर हाड़ाओं ने किसे पराजित किया था?
उत्तर:मुट्ठी भर हाड़ाओं ने महाराणा लाखा तथा उनकी सेना को पराजित किया था।

प्रश्न 3.वीर सिंह का प्राणान्त कैसे हुआ?
उत्तर:वीर सिंह का प्राणान्त गोले के वार से हुआ।

प्रश्न 4.“अनुशासन का अभाव हमारे देश के टुकड़े किये हुए है।यह कथन किसका है?
उत्तर:यह कथन महाराणा लाखा के विश्वास पात्र दरबारी अभयसिंह का है।

प्रश्न 5.महाराणा लाखा वीर सिंह के किस गुण से प्रसन्न हुए?
उत्तर:महाराणा लाखा वीर सिंह की वीरता के गुण से प्रसन्न हुए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.महाराणा लाखा ने कौन-सी प्रतिज्ञा की थी?
उत्तर:महाराणा लाखा ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक बूंदी के दुर्ग में ससैन्य प्रवेश नहीं करूँगा, अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा।

प्रश्न 2.चारणीने राजपूत शक्तियों के विषय में महाराणा से क्या कहा था?
उत्तर:चारणी ने महाराणा से कहा था कि आप हाड़ा वंशजों की धृष्टता को भूल जायें और राजपूत शक्तियों में स्नेह का सम्बन्ध बना रहने दें।

प्रश्न 3.वीर सिंह ने जन्मभूमि की रक्षा के विषय में अपने साथियों से क्या कहा था?
उत्तर:वीर सिंह ने कहा कि जिस जन्मभूमि की गोद में खेलकर हम बड़े हुए हैं, उसके अपमान को हम किसी भी कीमत पर सहन नहीं कर सकते। वीर सिंह ने अपने साथियों से कहा कि तुम अग्नि कुल के अंगारे हो। अपने वंश की शान को कमजोर मत होने देना। प्रतिज्ञा करो कि जब तक हमारे शरीर में प्राण हैं, तब तक इस दुर्ग (बूंदी का नकली दुर्ग) पर हम मेवाड़ राज्य पताका को स्थापित नहीं होने देंगे।

प्रश्न 4.महाराणा अपनी विजय को पराजय क्यों कहते
उत्तर:महाराणा अपनी विजय को पराजय इसलिए कहते हैं क्योंकि उनके व्यर्थ के अभिमान और विवेकहीन प्रतिज्ञा ने कितने ही निर्दोष प्राणों की बलि ले लीं थी। महाराणा को वीर सिंह जैसे देशभक्त और बहादुर युवक की मृत्यु का भी बहुत अफसोस था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

 

प्रश्न 1.‘वीर सिंह का चरित्र मातृभूमि के सम्मान की शिक्षा देता हैइस कथन को सिद्ध कीजिए।
उत्तर:वीर सिंह मेवाड़ के महाराणा लाखा के यहाँ नौकर था और बूंदी राज्य उसकी जन्मभूमि था। जब उसे पता लगता है कि महाराणा लाखा ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने हेतु बूंदी का नकली दुर्ग बनवाया है तथा उस पर चढ़ाई करके उसे मिट्टी में मिला देना चाहते हैं तो वह इस बात को सहन नहीं कर पाया। उसने अपने साथियों से कहा कि नकली बूंदी भी हमें प्राणों से अधिक प्रिय है और हम लोग अपनी मातृभूमि का अपमान नहीं होने देंगे। लेकिन जब उसके साथियों ने उससे कहा कि हम महाराणा के नौकर हैं, हमारा शरीर महाराणा के नमक से बना है, अत: हमें उनके साथ विश्वासघात नहीं करना चाहिए। इस पर वीर सिंह कहता है कि जब कभी मेवाड़ की स्वतन्त्रता पर आक्रमण हुआ है, हमारी तलवार ने उनके नमक का बदला दिया है। परन्तु जब मेवाड़ और बूंदी के मान का प्रश्न आयेगा तो हम मेवाड़ की दी हुई तलवारें महाराणा के चरणों में चुपचाप रख कर विदा लेंगे और बूंदी की ओर से अपने प्राणों का बलिदान देंगे। अन्ततः वीर सिंह ने अपनी मातृभूमि के सम्मान की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान कर दिया।

प्रश्न 2.महाराणा और अभयसिंह के चरित्र की दो-दो। विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:मेवाड़ के महाराणा लाखा की चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(
1) स्वाभिमानी वीर :
चित्तौड़ के महाराणा लाखा में स्वाभिमान का भाव कूट-कूटकर भरा है। बूंदी के हाड़ा द्वारा पराजित होने पर वे अपने वंश को कलंकित अनुभव करते हैं। उस कलंक से छुटकारा पाने के लिए प्रतिज्ञा करते हैं कि जब। तक मैं बूंदी के दुर्ग में ससैन्य प्रवेश नहीं करूँगा, अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा।

(2) सहृदय मानव :
महाराणा लाखा बड़े सहृदय व्यक्तित्व के धनी हैं। वे अपनी प्रतिज्ञा रखने के लिए बूंदी का नकली दुर्ग बनाकर उस पर विजय प्राप्त तो करते हैं परन्तु उस किले की। रक्षा में मारे गये वीरसिंह और सिपाहियों के रक्तपात से वे द्रवित। हो उठते हैं।

मेवाड़ के सेनापति अभयसिंह के चरित्र की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

(1) कुशल सेनानायक :
अभयसिंह अपने पद के अनुरूप। कार्य सम्भालने में निपुण हैं। वे महाराणा की प्रतिज्ञा रक्षा के लिए बूंदी के नकली दुर्ग की व्यवस्था तुरन्त करते हैं और सैनिकों को उस पर विजय प्राप्त करने के लिए युद्ध करने को भेजते हैं। वे युद्ध का संचालन करने में भी समझदारी से काम लेते हैं।

(2) राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत :
अभयसिंह में राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूटकर भरी है। वे मेवाड़ के सेनापति हैं। मेवाड़ के सम्मान को बढ़ाने का वे हर प्रयास करते हैं। वे बूंदी के राव हेमू को मेवाड़ की अधीनता स्वीकार करने को प्रेरित करते हैं।

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