मेरा नया बचपन
(सुभद्रा कुमारी चौहान)
(1) बार-बार आती
मैं तुझको, मधुर
याद बचपन तेरी।
गया, ले
गया तो जीवन
की, सबसे मस्त
खुशी मेरी॥
चिंता रहित खेलना
खाना, फिर फिरना
निर्भय स्वच्छंद।
कैसे भूला
जा सकता है,
बचपन का अतुलित
आनंद॥
कठिन शब्दार्थ:- मधुर = मीठी,
खुशी = प्रसन्नता, निर्भय = निडर,
स्वच्छंद = स्वतंत्र, अतुलित = जिसकी
तुलना ना की
जा सके
संदर्भ:- प्रस्तुत पंक्तियां मेरा
नया बचपन शीर्षक
कविता से ली
गई है। जिसकी रचयिता
श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान
है।
प्रसंग:- इन पंक्तियों
में कवित्री कवियत्री
ने अपने बचपन
की मधुर स्मृतियों
को अपनी बेटी
की बाल चेष्टा
के माध्यम से
व्यक्त किया है।
व्याख्या:-
इन पंक्तियों में
सुभद्रा कुमारी कहती हैं
कि, हे मेरे
प्यारे बचपन तुम्हारी
याद मुझे बार-बार आती
है। तू समय आने
पर चला गया
पर तू मेरे
जीवन की सबसे
अधिक मस्त खुशियों
को अपने साथ
ले गया। मैं बचपन
के उन दिनों
में बिना किसी
चिंता के खेलती
और खाती रहती
थी तथा निडर
होकर स्वतंत्र रूप
से घूमती रहती
थी। ऐसा अतुलनीय बचपन का
आनंद भला कैसे
भूला जा सकता
है अर्थात उस
आनंद को मैं
कभी नहीं भूल
सकती।
विशेष:- (1) बचपन
की मधुर यादों
का वर्णन।
(2) अनुप्रास अलंकार का
प्रयोग।
(3) सरल, सुबोध
शब्दों का प्रयोग।
(2) ऊंच-नीच का
ज्ञान नहीं था,
छुआ-छूत किसने
जानी।
बनी हुई
थी आह झोपड़ी,
और 'चीथड़ों' में
रानी॥
रोना और
मचल जाना भी,
क्या आनंद दिखाते
थे।
बड़े-बड़े
मोती से आंसू,
जयमाला बनाते थे॥
कठिन शब्दार्थ:- ऊंच-नीच=
छोटे-बड़े, जयमाला=
विजय पाने की
माला, चिथड़े= फटे
कपड़े, मचल जाना=
जिद करन
संदर्भ:-प्रस्तुत पंक्तियां मेरा
नया बचपन शीर्षक
कविता से ली
गई है। जिसकी रचयिता
श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान
है।
प्रसंग:-इन पंक्तियों
में कवित्री कवियत्री
ने अपने बचपन
की मधुर स्मृतियों
को अपनी बेटी
की बाल चेष्टा
के माध्यम से
व्यक्त किया है
।
व्याख्या:-
इन पंक्तियों में
सुभद्रा कुमारी जी कहती
हैं कि, उस
बचपन में मेरे
मन में ऊंच-नीच की
भावना नहीं थी
अर्थात में बिना
किसी छोटे-बड़े
के भेद के
सबके साथ खेला
करती थी और
ना ही मैं
छुआछूत जानती थी। मैं उस
समय झोपड़ी में
रहते हुए तथा
चिथड़े पहने रहने
पर भी रानी
जैसी लगती थी। उस समय बात
बात पर मैं
रोने लग जाती
थी और किसी
बात पर हट
करके मचल जाती
थी, यह दोनों
बातें मुझे बहुत
आनंद देती थी। कभी-कभी मेरी
आंखों से निकलने
वाले बड़े-बड़े
आंसू मोती बनकर
मेरे गालों पर
जयमाला पहना दिया
करते थे।
विशेष:- (1) बचपन
की मधुर यादों
का वर्णन ।
(2) मोती से
आंसू में उपमा
अलंकार।
(3) सरल, सुबोध
शब्दों का प्रयोग।
(3) पाया बचपन फिर
से मैंने, बचपन
बेटी बन आया।
उसकी मंजुल
मूर्ति देखकर, मुझमें नवजीवन
आया॥
मैं भी
उसके साथ खेलती,
खाती हूं, चलाती
हूं।
मिलकर उसके साथ
स्वयं, मैं भी
बच्ची बन जाती
हूं॥
कठिन शब्दार्थ:- मंजुल= सुंदर,
नवजीवन= नया जीवन,
संदर्भ:-प्रस्तुत पंक्तियां मेरा
नया बचपन शीर्षक
कविता से ली
गई है। जिसकी रचयिता
श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान
है।
प्रसंग:-इन पंक्तियों
में कवित्री कवियत्री
ने अपने बचपन
की मधुर स्मृतियों
को अपनी बेटी
की बाल चेष्टा
के माध्यम से
व्यक्त किया है।
व्याख्या:-इन पंक्तियों
में सुभद्रा कुमारी
जी कहती हैं
कि, मेरी बेटी
के रूप में
मैंने अपना खोया
हुआ बचपन फिर
से पा लिया
है। उसकी सुंदर मूर्ति देखकर
मुझ में नया
जीवन आ गया
है। आज मैं अपनी
बेटी के साथ
खेलती हूं, खाती
हूं और उसी
के समान तोतली
बोली बोलती हूं,
मैं उसके साथ
मिलकर स्वयं भी
बच्ची बन जाती
हूं।
विशेष:-
(1) बचपन की मधुर
यादों का वर्णन।
(2) अनुप्रास अलंकार का
प्रयोग।
(3) सरल, सुबोध
शब्दों का प्रयोग।
अगर आप इसका वीडियो देखना चाहते हैं तो इस लिंक परक्लिक करें.. https://www.youtube.com/watch?v=4g9J4fJ1r5U&t=94s
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